कांग्रेस मेयर प्रत्याशी राज्य आंदोलनकारी वीरेंद्र पोखरियाल का रहा है जन मुद्दों को लेकर पुराना संघर्ष

virendra pokhriyal

देहरादून: निकाय चुनावों को लेकर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी विरेंद्र पोखरियाल का राजनीतिक सफर और व्यक्तित्व उल्लेखनीय हैं। 90 के दशक में डीएवी कॉलेज में छात्र राजनीति से अपनी पहचान बनाने वाले विरेन्द्र पोखरियाल ने 1993 में छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के बाद न केवल छात्रों का नेतृत्व किया बल्कि आरक्षण विरोधी आंदोलन और उत्तराखंड राज्य आंदोलन को नई दिशा भी दी। उनके स्पष्ट, सरल और जुझारू व्यक्तित्व ने उन्हें छात्रों और युवाओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय बनाया।

पृथक राज्य के संघर्ष में 1994 में उत्तराखंड आंदोलन को गति देने में विरेंद्र पोखरियाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पौड़ी की ऐतिहासिक रैली के दौरान उन्होंने आरक्षण विरोधी आंदोलन को उत्तराखंड आंदोलन में तब्दील किया, जिससे यह आंदोलन गांव-गांव तक फैल गया। यह उनकी नेतृत्व क्षमता और जनता से जुड़ाव का प्रमाण है।

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पोखरियाल सहकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे और पिछले डेढ़ दशक से सहकारी बाजार के अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाए रखी। उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण उनका बेदाग चरित्र और स्पष्टवादिता है, जो आज भी उन्हें जनता के बीच सम्मानित और भरोसेमंद बनाती है।

कांग्रेस ने इस बार उन्हें देहरादून नगर निगम के महापौर पद के लिए प्रत्याशी बनाया गया है। उनके समर्थन में न केवल राज्य आंदोलनकारी बल्कि दूनघाटी के आम जन भी एकजुट हो रहे हैं। विरेंद्र पोखरियाल जैसे ईमानदार और संघर्षशील नेता को प्रत्याशी बनाना, स्थानीय निकाय चुनावों के साथ ही क्षेत्र के विकास और जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

राज्य आंदोलनकारियों का आज भी कहना है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के ढाई दशक बाद भी आंदोलनकारी साथियों को अपनी मूल अवधारणाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में, विरेंद्र पोखरियाल जैसे आंदोलनकारी को राजनीतिक भागीदारी देना, आंदोलनकारियों के लिए उम्मीद की किरण है। यह समय है कि सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठन, आंदोलनकारी नेतृत्व को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट हों।

कांग्रेस नेताओं का भी मानना है कि विरेंद्र पोखरियाल की मेयर पद पर जीत केवल एक व्यक्ति की सफलता नहीं होगी, बल्कि यह राज्य आंदोलन के मूल्यों और उद्देश्यों को नई पहचान देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा। उनके नेतृत्व में दूनघाटी के विकास और नैसर्गिक सौंदर्य को संरक्षित रखने की उम्मीद की जा सकती है।